It is well-known that Brahman indeed achieved victory for the gods. But in that victory which was Brahman's the gods became elated. [1]
ब्रह्म ने ही देवताओं के लिए विजय प्राप्त की । ब्रह्म की उस विजय से देवताओं को अहंकार हो गया । वे समझने लगे कि यह हमारी ही विजय है । हमारी ही महिमा है ॥१॥
तत् ह एषाम् विजज्ञौ तेभ्यो ह प्रादुर्बभूव तन्न व्यजानत किम् इदम् यक्षम् इति ॥२॥
They thought, "Ours alone is this victory, ours alone is this glory". Brahman knew this their pride and appeared before them, but they knew not who this Yaksha (worshipful Being) was. [2]
यह जानकर वह (ब्रह्म) उनके सामने प्रादुर्भूत हुआ । और वे (देवता) उसको न जान सके कि ‘यह यक्ष कौन है’ ॥२॥
ते अग्निम् अब्रुवन् जातवेदः एतत् विजानीहि किम् इदम् यक्षम् इति तथा इति ॥३॥
They said to Agni: "O Jataveda, know thou this as to who this Yaksha is". (He said:) "So be it." [3]
तब उन्होंने (देवों ने) अग्नि से कहा कि, ‘हे जातवेद ! इसे जानो कि यह यक्ष कौन है’ । अग्नि ने कहा - ‘बहुत अच्छा’ ॥३॥
तत् अभ्यद्रवत् तम् अभ्यवदत् कः असि इति अग्नि वै अहम् अस्मि इति अब्रवीत् जातवेदाः वा अहम् अस्मि इति ॥४॥
Agni approached It. It asked him, "Who art thou?" He replied, "I am Agni or I am Jataveda". [4]
अग्नि यक्ष के समीप गया । उसने अग्नि से पूछा - ‘तू कौन है’ ? अग्नि ने कहा - ‘मैं अग्नि हूँ, मैं ही जातवेदा हूँ’ ॥४॥
तस्मिन् त्वयि किं वीर्यं इति । अपि इदम् सर्वम् दहेयम् , यत् इदम् पृथिव्याम् इति ॥५॥
(It said:) "What is the power in thee, such as thou art?" (Agni said:) "I can burn all this that is upon the earth." [5]
‘ऐसे तुझ अग्नि में क्या सामर्थ्य है ?’ अग्नि ने कहा - ‘इस पृथ्वी में जो कुछ भी है उसे जलाकर भस्म कर सकता हूँ’ ॥५॥
तस्मै तृणम् निदधौ एतत् दह इति । तत् उपप्रेयाय सर्वजवेन तत् न शशाक दग्धुम् स तत् एव निववृते, न एतत् अशकम् विज्ञातुम् यत् एतत् यक्षम् इति ॥६॥
For him (It) placed there a blade of grass and said: "Burn this". (Agni) went near it in all haste, but he could not burn it. He returned from there (and said:) "I am unable to understand who that Yaksha is". [6]
तब यक्ष ने एक तिनका रखकर कहा कि ‘इसे जला’ । अपनी सारी शक्ति लगाकर भी उस तिनके को जलाने में समर्थ न होकर वह लौट गया । वह उस यक्ष को जानने में समर्थ न हो सका ॥६॥
अथ वायुम् अब्रुवन् वायो एतत् विजानीहि किम् एतत् यक्षम् इति तथा इति ॥७॥
Then (the gods) said to Vayu: "O Vayu, know thou this as to who this Yaksha is". (He said:) "So be it". [7]
तब उन्होंने ( देवताओं ने) वायु से कहा - ‘हे वायु ! इसे जानो कि यह यक्ष कौन है’ । वायु ने कहा - ‘बहुत अच्छा’ ॥७॥
तत् अभ्यद्रवत् तम् अभ्यवदत् कः असि इति । वायुः वा अहम् अस्मि इति अब्रवीत् मातरिश्वा वा अहम् अस्मि इति ॥८॥
Vayu approached It. It said to him, "Who art thou?" He replied, "I am Vayu or I am Matarsiva". [8]
वायु यक्ष के समीप गया । उसने वायु से पूछा - ‘तू कौन है’ । वायु ने कहा - ‘मैं वायु हूँ, मैं ही मातरिश्वा हूँ’ ॥८॥
तस्मिन् त्वयि किं वीर्यम् इति । अपि इदम् सर्वम् आददीयम् , यत् इदम् पृथिव्याम् इति ॥९॥
(It said:) "What is the power in thee, such as thou art?" (Vayu said:) "I can take hold of all this that is upon the earth". [9]
‘ऐसे तुझ वायु में क्या सामर्थ्य है’ ? वायु ने कहा - ‘इस पृथ्वी में जो कुछ भी है उसे ग्रहण कर सकता हूँ’ ॥९॥
तस्मै तृणम् निदधौ एतत् आदत्सव इति । तत् उपप्रेयाय सर्वजवेन तत् न शशाक आदातुम् स तत् एव निववृते, न एतत् अशकम् विज्ञातुं यत् एतत् यक्षम् इति ॥१०॥
For him (It) placed there a blade of grass and said: "Take this up". (Vayu) went near it in all haste, but he could not take it up. He returned from there (and said:) "I am unable to understand who that Yaksha is". [10]
तब यक्ष ने एक तिनका रखकर कहा कि ‘इसे ग्रहण कर’ । अपनी सारी शक्ति लगाकर भी उस तिनके को ग्रहण करने में समर्थ न होकर वह लौट गया । वह उस यक्ष को जानने में समर्थ न हो सका ॥१०॥
अथ इन्द्रम् अब्रुवन् मघवन् एतत् विजानीहि किम् एतत् यक्षम् इति । तथा इति । तत् अभ्यद्रवत् । तस्मात् तिरोदधे ॥११॥
Then (the gods) said to Indra: "O Maghava, know thou this as to who this Yaksha is". (He said:) "So be it". He approached It, but It disappeared from him. [11]
तब उन्होंने (देवताओं ने) इन्द्र से कहा - ‘हे मघवन् ! इसे जानो कि यह यक्ष कौन है’ । इन्द्र ने कहा - ‘बहुत अच्छा’ । वह यक्ष के समीप गया । उसके सामने यक्ष अन्तर्धान हो गया ॥११॥
स तस्मिन् एव आकाशे स्त्रियम् आजगाम बहुशोभमानाम् उमाम् हैमवतीम् ताम् ह उवाच किम् एतत् यक्षम् इति ॥१२॥
In that space itself (where the Yaksha had disappeared) Indra approached an exceedingly charming woman. To that Uma decked in gold (or to the daughter of the Himalayas), he said: "Who is this Yaksha?" [12]
वह इन्द्र उसी आकाश में अतिशय शोभायुक्त स्त्री, हेमवती उमा के पास आ पहुँचा, और उनसे पूछा कि ‘यह यक्ष कौन था’ ॥१२॥
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