Tuesday, July 11, 2023

MUNDAK UPANISHAD -I :Part-1

ब्रह्मा देवानां प्रथमः सम्बभूव विश्वस्य कर्ता भुवनस्य गोप्ता । स ब्रह्मविद्यां सर्वविद्याप्रतिष्ठामथर्वाय ज्येष्ठपुत्राय प्राह ॥१॥

I-i-1: Brahma, the creator of the Universe and the protector of the world, was the first among the gods to manifest Himself. To His eldest son Atharva He imparted that knowledge of Brahman that is the basis of all knowledge.

सम्पूर्ण देवताओं में सबसे पहले ब्रह्मा उत्पन्न हुए। वह विश्व के रचयिता और समस्त लोकों की रक्षा करने वाले थे। उन्होने अपने ज्येष्ठ पुत्र अथर्वा को समस्त विद्याओं की आधारभूत ब्रह्मविद्या का उपदेश दिया ॥१॥

अथर्वणे यां प्रवदेत ब्रह्माऽथर्वा तं पुरोवाचाङ्गिरे ब्रह्मविद्याम् । स भारद्वाजाय सत्यवाहाय प्राह भारद्वाजोऽङ्गिरसे परावराम् ॥२॥

I-i-2: The Knowledge of Brahman that Brahma imparted to Atharva, Atharva transmitted to Angir in days of yore. He (Angir) passed it on to Satyavaha of the line of Bharadvaja. He of the line of Bharadvaja handed down to Angiras this knowledge that had been received in succession from the higher by the lower ones.

अथर्वा को ब्रह्मा ने जिसका उपदेश किया था वह ब्रह्मविद्या पहले अथर्वा ने अंगी ऋषि से कही । अंगी ने वह भारद्वाज गोत्रीय सत्यवह से कही तथा भारद्वाज-पुत्र ने श्रेष्ठ से कनिष्ठ को प्राप्त होती हुई वह विद्या अंगिरा ऋषि से कही ॥२॥

शौनको ह वै महाशालोऽङ्गिरसं विधिवदुपसन्नः पप्रच्छ । कस्मिन्नु भगवो विज्ञाते सर्वमिदं विज्ञातं भवतीति ॥३॥

I-i-3: Saunaka, well known as a great householder, having approached Angiras duly, asked, 'O adorable sir, (which is that thing) which having been known, all this becomes known?'

शौनक नामक महागृहस्थ ने विधि-पूर्वक अंगिरा के पास जाकर पूछा - ‘भगवन ! किसके जान लिए जाने पर वह सब कुछ जान लिया जाता है ?॥३॥

तस्मै स होवाच । द्वे विद्ये वेदितव्ये इति ह स्म यद्ब्रह्मविदो वदन्ति परा चैवापरा च ॥४॥

I-i-4: To him he said, '"There are two kinds of knowledge to be acquired - the higher and the lower"; this is what, as tradition runs, the knowers of the import of the Vedas say.'

उन्होंने उससे कहा - ब्रह्मवेत्ताओं ने कहा है कि दो विद्याएँ ही जाननेयोग्य हैं - एक परा और दूसरी अपरा’ ॥४॥

तत्रापरा ऋग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदोऽथर्ववेदः शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तं छन्दो ज्योतिषमिति । अथ परा यया तदक्षरमधिगम्यते ॥५॥

I-i-5: Of these, the lower comprises the Rig-Veda, Yajur-Veda, Sama-Veda, Atharva-Veda, the science of pronunciation etc., the code of rituals, grammar, etymology, metre and astrology. Then there is the higher (knowledge) by which is attained that Imperishable.

उनमें ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष - ये अपरा हैं तथा जिससे उस अक्षर परमात्मा को जाना जाता है वह परा है ॥५॥

यत्तदद्रेश्यमग्राह्यमगोत्रमवर्णमचक्षुःश्रोत्रं तदपाणिपादम् । नित्यं विभुं सर्वगतं सुसूक्ष्मंतदव्ययं यद्भूतयोनिं परिपश्यन्ति धीराः ॥६॥

I-i-6: (By the higher knowledge) the wise realize everywhere that which cannot be perceived and grasped, which is without source, features, eyes, and ears, which has neither hands nor feet, which is eternal, multiformed, all-pervasive, extremely subtle, and un-diminishing and which is the source of all.

वह जो अदृश्य, अग्राह्य, अगोत्र, अवर्ण, और चक्षु श्रोत्र इत्यादि से रहित है एवं हाथ-पैर इत्यादि कर्मेन्द्रियों से भी रहित है, नित्य, विभु, सर्वगत, अत्यन्त सूक्ष्म, अव्यय है तथा समस्त भूतों का कारण है उसे धीर पुरुष सब ओर देखते हैं ॥६॥

यथोर्णनाभिः सृजते गृह्णते च यथा पृथिव्यामोषधयः सम्भवन्ति । यथा सतः पुरुषात् केशलोमानि तथाऽक्षरात् सम्भवतीह विश्वम् ॥७॥

I-i-7: As a spider spreads out and withdraws (its thread), as on the earth grow the herbs (and trees), and as from a living man issues out hair (on the head and body), so out of the Imperishable does the Universe emerge here (in this phenomenal creation).

जिस प्रकार मकड़ी जाले को बनाती और निगलती है, जिस प्रकार पृथ्वी से औषधियाँ उत्पन्न होती हैं, जिस प्रकार जीवित पुरुष से केश एवं रोम उत्पन्न होते हैं, उसी प्रकार उस अक्षर से यह विश्व प्रकट होता है ॥७॥

तपसा चीयते ब्रह्म ततोऽन्नमभिजायते । अन्नात् प्राणो मनः सत्यं लोकाः कर्मसु चामृतम् ॥८॥

I-i-8: Through knowledge Brahman increases in size. From that is born food (the Un-manifested). From food evolves Prana (Hiranyagarbha); (thence the cosmic) mind; (thence) the five elements; (thence) the worlds; (thence) the immortality that is in karmas.

तप से ब्रह्म उपचय को प्राप्त होता है । उससे अन्न उत्पन्न होता है । अन्न से क्रमशः प्राण, मन, सत्य, लोक, कर्म और कर्म से अमृत उत्पन्न होता है ॥८॥

यः सर्वज्ञः सर्वविद्यस्य ज्ञानमयं तापः । तस्मादेतद्ब्रह्म नाम रूपमन्नं च जायाते ॥९॥

I-i-9: From Him, who is omniscient in general and all-knowing in detail and whose austerity is constituted by knowledge, evolve this (derivative) Brahman, name, colour and food.

जो सर्वज्ञ और सर्व-विशेषज्ञ है, जिसका ज्ञानमय तप है, उसी से यह ब्रह्म, नाम, रूप और अन्न उत्पन्न होता है ॥९॥

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