Friday, July 14, 2023

PRASHNA UPANISHAD: Second Question(Prashna)

अथ हैनं भार्गवो वैदर्भिः पप्रच्छ । भगवन् कत्येव देवाः प्रचां दिधारयन्ते कतर एतत् प्रकशयन्ते कः पुनरेषां वरिष्ठ इति ॥१॥

II-1: Next a scion of the line of Bhrigu, born in Vidarbha, asked him, "Sir, how many in fact are the deities that sustain a creature? Which among them exhibit this glory? Which again is the chief among them?"

अब उनसे विदर्भदेश के भार्गव ने पूछा - ‘भगवन् ! कितने देवता इस प्रजा को धारण करते हैं ? कौन इसे प्रकाशित करते हैं ? और फिर कौन उनमें सर्वश्रेष्ठ है ?’॥१॥

तस्मै स होवाचाकाशो ह वा एष देवो वायुरग्निरापः पृथिवी वाङ्मनश्चक्षुः श्रोत्रं च । ते प्रकाश्याभिवदन्ति वयमेतद्बाणमवष्टभ्य विधारयामः ॥२॥

II-2: To him he said: Space in fact is this deity, as also are air, fire, water, earth, the organ of speech, mind, eye and ear. Exhibiting their glory they say, "Unquestionably it is we who hold together this body by not allowing it to disintegrate."

वे उससे बोले - ‘आकाश ही वह देव है और वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, वाणी, मन, चक्षु और श्रोत्र’ । ये सभी कहने लगे - ‘हम प्रकाशित करते हैं । हमने ही इस शरीर को आश्रय देकर धारण कर रखा है’ ॥२॥

तान् वरिष्ठः प्राण उवाच । मा मोहमापद्यथ अहमेवैतत् पञ्चधाऽऽत्मानं प्रविभज्यैतद्बाणमवष्टभ्य विधारयामीति तेऽश्रद्दधाना बभूवुः ॥३॥

II-3: To them the chief Prana said, "Do not be deluded. It is I who do not allow it to disintegrate by sustaining it by dividing myself fivefold." They remained incredulous.

उन सबमे वरिष्ठ प्राण बोला - ‘मोह को प्राप्त मत हो । मैं ही स्वयं को इन पाँच प्रकारों में विभक्त करके इस शरीर को आश्रय देकर धारण करता हूँ’ । किन्तु उन सबने इस पर श्रद्धा नहीं की ॥३॥

सोऽभिमानादूर्ध्वमुत्क्रामत इव तस्मिन्नुत्क्रामत्यथेतरे सर्व एवोत्क्रामन्ते तस्मि/श्च प्रतिष्ठमाने सर्व एव प्रतिष्ठन्ते । तद्यथा मक्षिका मधुकरराजानमुत्क्रामन्तं सर्व एवोत्क्रमन्ते तस्मि/ष्च प्रत्ष्ठमाने सर्व एव प्रतिष्टन्त एवम् वाङ्मनष्चक्षुः श्रोत्रं च ते प्रीताः प्राणं स्तुन्वन्ति ॥४॥

II-4: He appeared to be rising up (from the body) out of indignation. As He ascended, all the others, too, ascended immediately; and when He remained quite, all others, too, remained in position. Just as in the world, all the bee take to flight in accordance as the king of the bees takes to his wings, and they settle down as he does so, similarly, did speech, mind, eye, ear, etc., behave. Becoming delighted, they (began to) praise Prana.

तब वह प्राण अभिमानपूर्वक उत्क्रमण करने लगा । उसके उत्क्रमण करने पर सभी उत्क्रमण करने लगते और उसके स्थित हो जाने पर सभी स्थित हो जाते । जिस प्रकार मधुकरराज के ऊपर उठने पर सारी मक्खियाँ ऊपर जाने लगती है और उसके बैठ जाने पर सारीं बैठ जाती हैं, वैसा ही वाक्, मन, चक्षु और श्रोत्र भी हुए । तब संतुष्टि को प्राप्त होकर वे प्राण की स्तुति करने लगे ॥४॥

एषोऽग्निस्तपत्येष सूर्य एष पर्जन्यो मघवानेष वायुः एष पृथिवी रयिर्देवः सदसच्चामृतं च यत् ॥५॥

II-5: This one (i.e. Prana) burns as fire, this one is the sun, this one is cloud, this one is Indra and air, this one is the earth and food. This god is the gross and the subtle, as well as that which is nectar.

यह अग्नि होकर तपता है, यह सूर्य है, यह मेघ है, यह इन्द्र है, यही वायु है । यह देव ही पृथ्वी और रयि है, सत् और असत् है, यही अमृत है ॥५॥

अरा इव रथनाभौ प्राणे सर्वं प्रतिष्ठितम् । ऋचो यजूꣳषि सामानि यज्ञः क्षत्रं ब्रह्म च ॥६॥

II-6: Like spokes on the hub of a chariot wheel, are fixed on Prana all things - riks, yajus, samas, sacrifice, Kshatriya and Brahmana.

रथ की नाभि में लगे हुए अरों के ही सामान ऋक्, यजुः, साम, यज्ञ तथा ब्राह्मण और क्षत्रिय ये सभी प्राण में ही प्रतिष्ठित हैं ॥६॥

प्रजापतिश्चरसि गर्भे त्वमेव प्रतिजायसे । तुभ्यं प्राण प्रजास्त्विमा बलिं हरन्ति यः प्रणैः प्रतितिष्ठसि ॥७॥

II-7: It is you who move about in the womb as the Lord of creation, and it is you who take birth after the image of the parents. O Prana, it is for you, who reside with the organs, that all these creatures carry presents.

हे प्राण ! तू ही प्रजापति है । तू ही गर्भ में विचरता हुआ जन्म लेता है । सबमें प्रतिष्ठित तुझ प्राण को ही यह सम्पूर्ण प्रजा बलि समर्पित करती है ॥७॥

देवानामसि वह्नितमः पितृणां प्रथमा स्वधा । ऋषीणां चरितं सत्यमथर्वाङ्गिरसामसि ॥८॥

II-8: You are the best transmitter (of libation) to the celestials. You are the food-offering to the Manes that precedes other offerings. You are the right conduct of the organs that constitute the essence of the body and are known as the Atharvas.

तू देवताओं के लिए उत्तम अग्नि है, पितृगण के लिए प्रथम स्वधा है और अथर्वांगिरस ऋषियों द्वारा आचरित सत्य है ॥८॥

इन्द्रस्त्वं प्राण तेजसा रुद्रोऽसि परिरक्षिता । त्वमन्तरिक्षे चरसि सूर्यस्त्वं ज्योतिषां पतिः ॥९॥

II-9: O Prana, you are Indra. Through your valour you are Rudra; and you are the preserver on all sides. You move in the sky - you are the sun, the Lord of all luminaries.

हे प्राण ! तू इन्द्र है । तेजरूपी रूद्र है । रक्षक है । तू ही अन्तरिक्ष में विचरता हुआ सूर्य है । तू ही समस्त ज्योतियों का स्वामी है ॥९॥

यदा त्वमभिवर्षस्यथेमाः प्राण ते प्रजाः । आनन्दरूपास्तिष्ठन्ति कामायान्नं भविष्यतीति ॥१०॥

II-10: O Prana, when you pour down (as rain), then these creatures of yours continue to be in a happy mood under the belief, "Food will be produced to our hearts' content."

हे प्राण ! तू ही जब वर्षा का रूप लेकर बरसता है, तब तेरी यह समस्त प्रजा ‘यथेष्ठ अन्न उत्पन्न होगा’ इस प्रकार आनन्दरूप से स्थित होती है ॥१०॥

व्रात्यस्त्वं प्राणैकर्षरत्ता विश्वस्य सत्पतिः । वयमाद्यस्य दातारः पिता त्वं मातरिश्व नः ॥११॥

II-11: O Prana, you are unpurified, you are the fire Ekarsi, (you are) the eater, and you are the lord of all that exists. We are the givers of (your) food. O Matarisva, you are our father.

हे प्राण ! तू ही संस्काररहित एकमात्र ऋषि है । विश्व का सर्वश्रेष्ठ स्वामी है । हम तेरा भक्ष्य देनेवाले हैं । तू ही वायुस्वरूप हमारा पिता है ॥११॥

या ते तनूर्वाचि प्रतिष्ठिता या श्रोत्रे या च चक्षुषि । या च मनसि सन्तता शिवां तां कुरू मोत्क्रमीः ॥१२॥

II-12: Make calm that aspect of yours that is lodged in speech, that which is in the ear, that which is in the eye, and that which permeates the mind. Do not rise up.

तेरा जो स्वरूप वाणी, चक्षु और श्रोत्र में प्रतिष्ठित है तथा मन में व्याप्त है । उसे तू कल्याणमय कर । उत्क्रमण न कर ॥१२॥
प्राणस्येदं वशे सर्वं त्रिदिवे यत् प्रतिष्ठितम् मातेव पुत्रान् रक्षस्व श्रीश्च प्रज्ञां च विधेहि न इति ॥१३॥

II-13: All this (in this world), as also all that is in heaven is under the control of Prana. Protect us just as a mother does her sons, and ordain for us splendour and intelligence.

यह सब जो तीनों लोकों में स्थित है सब प्राण के ही अधीन है । जैसे माता पुत्र की रक्षा करती है, उसी प्रकार हमारी रक्षा कर एवं श्री और प्रज्ञा प्रदान कर ॥१३॥

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