Saturday, July 15, 2023

AITAREYA UPANISHAD: First Chapter( Second Part)

ता एता देवताः सृष्टा अस्मिन्महत्यर्णवे प्रापतन् । तमशनापिपासाभ्यामन्ववार्जत् । ता एनमब्रुवन्नायतनं नः प्रजानीहि यस्मिन्प्रतिष्ठिता अन्नमदामेति ॥१॥

I-ii-1: These deities, that had been created, fell into this vast ocean. He subjected Him (i.e. Virat) to hunger and thirst. They said to Him (i.e. to the Creator), "Provide an abode for us, staying where we can eat food."

इस प्रकार सृजित ये सब देवता इस महान् समुद्र को प्राप्त होकर भूख और प्यास से संयुक्त कर दिए गए । वे उससे बोले - ऐसे आश्रयस्थान की व्यवस्था करें, जिसमें स्थित रहकर अन्न का भक्षण कर सकें ॥१॥

ताभ्यो गामानयत्ता अब्रुवन्न वै नोऽयमलमिति । ताभ्योऽश्वमानयत्ता अब्रुवन्न वै नोऽयमलमिति ॥२॥

I-ii-2: For them He (i.e. God) brought a cow. They said, "This one is not certainly adequate for us." For them He brought a horse. They said, "This one is not certainly adequate for us."

उनके लिए गौ लाये । उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए पर्याप्त नही है । उनके लिए अश्व लाये । उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए पर्याप्त नही है ॥२॥

ताभ्यः पुरुषमानयत्ता अब्रुवन् सुकृतं बतेति पुरुषो वाव सुकृतम् । ता अब्रवीद्यथायतनं प्रविशतेति ॥३॥

I-ii-3: For them He brought a man. They said "This one is well formed; man indeed is a creation of God Himself". To them He said, "Enter into your respective abodes".

उनके लिए पुरुष लाये । उन्होंने कहा यह बहुत सुन्दर बना है । निश्चय पुरुष ही सुन्दर रचना है । उसने कहा - ‘अपने-अपने आश्रयस्थान में प्रवेश कर जाओ’ ॥३॥

अग्निर्वाग्भूत्वा मुखं प्राविशद्वायुः प्राणो भूत्वा नासिकेप्राविशदादित्यश्चक्षुर्भूत्वाऽक्षिणी प्राविशाद्दिशः श्रोत्रं भूत्वा कर्णौ प्राविशन्नोषधिवनस्पतयो लोमानि भूत्वा त्वचंप्राविशंश्चन्द्रमा मनो भूत्वा हृदयं प्राविशन्मृत्युरपानो भूत्वा नाभिं प्राविशदापोरेतो भूत्वा शिश्नं प्राविशन् ॥४॥

I-ii-4: Fire entered into the mouth taking the form of the organ of speech; Air entered into the nostrils assuming the form of the sense of smell; the Sun entered into the eyes as the sense of sight; the Directions entered into the ears by becoming the sense of hearing; the Herbs and Trees entered into the skin in the form of hair (i.e. the sense of touch); the Moon entered into the heart in the shape of the mind; Death entered into the navel in the form of Apana (i.e. the vital energy that presses down); Water entered into the limb of generation in the form of semen (i.e. the organ of procreation).

अग्नि वाक् होकर मुख में प्रवेश कर गया । वायु प्राण होकर नासिकारन्ध्रों में प्रवेश कर गया । सूर्य चक्षु होकर आँखों में प्रवेश कर गया । दिशा श्रोत्र होकर कानों में प्रवेश कर गया । ओषधि और वनस्पति रोम होकर त्वचा में प्रवेश कर गए । चन्द्रमा मन होकर हृदय में प्रवेश कर गया । मृत्यु अपान होकर नाभि में प्रवेश कर गया । जल रेतस् होकर शिश्न में प्रवेश कर गया ॥४॥

तमशनायापिपासे अब्रूतामावाभ्यामभिप्रजानीहीति ते अब्रवीदेतास्वेव वां देवतास्वाभजाम्येतासु भागिन्न्यौ करोमीति । तस्माद्यस्यै कस्यै च देवतायै हविर्गृह्यते भागिन्यावेवास्यामशनायापिपासे भवतः ॥५॥

I-ii-5: To Him Hunger and Thirst said, "Provide for us (some abode)." To them He said, "I provide your livelihood among these very gods; I make you share in their portions." Therefore when oblation is taken up for any deity whichsoever, Hunger and Thirst become verily sharers with that deity.

भूख-प्यास ने उससे कहा कि हमारे लिए भी व्यवस्था करें । वह बोला - ‘तुम्हें इन देवताओं में ही भाग दूँगा, इन्हीं का भागीदार बनाता हूँ’ । अतः जिस किसी देवता के लिए हवि ग्रहण की जाती है, उसमें भूख और प्यास दोनों ही भागीदार होती हैं ॥५॥

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