I-i-1: In the beginning this was but the absolute Self alone. There was nothing else whatsoever that winked. He thought, "Let Me create the worlds."
सबसे पहले एकमात्र यह आत्मा ही था । उसके सिवा सक्रियरूप कोई भी न था । उसने इच्छा की - ‘लोकों का सृजन करूँ’ ॥१॥
स इमाँ ल्लोकानसृजत । अम्भो मरीचीर्मापोऽदोऽम्भः परेण दिवं द्यौः प्रतिष्ठाऽन्तरिक्षं मरीचयः । पृथिवी मरो या अधस्तात्त आपः ॥२॥
I-i-2: He created these world, viz. ambhas, marici, mara, apah. That which is beyond heaven is ambhas. Heaven is its support. The sky is marici. The earth is mara. The worlds that are below are the apah.
उसने इन लोकों का सृजन किया - अम्भ, मरीचि, मर और आप । देव से परे और द्यौ जिसकी प्रतिष्ठा है, वह ‘अम्भ’ है । अन्तरिक्ष ‘मरीचि’ है । पृथ्वी ‘मर’ है । जो नीचे स्थित है वह ‘आप’ है ॥२॥
स ईक्षतेमे नु लोका लोकपालान्नु सृजा इति । सोऽद्भ्य एव पुरुषं समुद्धृत्यामूर्छयत् ॥३॥
I-i-3: He thought, "These then are the worlds. Let Me create the protectors of the worlds." Having gathered up a (lump of the) human form from the water itself, He gave shape to it.
उसने उन लोकों के लोकपालों का सृजन करने की इच्छा की । उसने जल से ही पुरुष निकालकर उसे मूर्तिमान किया ॥३॥
तमभ्यतपत्तस्याभितप्तस्य मुखं निरभिद्यत यथाऽण्डं मुखाद्वाग्वाचोऽग्निर्नासिके निरभिद्येतं नासिकाभ्यां प्राणः प्राणाद्वायुरक्षिणी निरभिद्येतमक्षीभ्यां चक्षुश्चक्षुष आदित्यः कर्णौ निरभिद्येतां कर्णाभ्यां श्रोत्रं श्रोत्रद्दिशस्त्वङ्निरभिद्यत त्वचो लोमानि लोमभ्य ओषधिवनस्पतयो हृदयं निरभिद्यत हृदयान्मनो मनसश्चन्द्रमा नाभिर्निरभिद्यत नाभ्या अपानोऽपानान्मृत्युः शिश्नं निरभिद्यत शिश्नाद्रेतो रेतस आपः ॥४॥
I-i-4: He deliberated with regard to Him (i.e. Virat of the human form). As He (i.e. Virat) was being deliberated on, His (i.e. Virat'') mouth parted, just as an egg does. From the mouth emerged speech; from speech came Fire. The nostrils parted; from the nostrils came out the sense of smell; from the sense of smell came Vayu (Air). The two eyes parted; from the eyes emerged the sense of sight; from the sense of sight came the Sun. The two ears parted; from the ears came the sense of hearing; from the sense of hearing came the Directions. The skin emerged; from the skin came out hair (i.e. the sense of touch associated with hair); from the sense of touch came the Herbs and Trees. The heart took shape; from the heart issued the internal organ (mind); from the internal organ came the Moon. The navel parted; from the navel came out the organ of ejection; from the organ of ejection issued Death. The seat of the procreative organ parted; from that came the procreative organ; from the procreative organ came out Water.
उसने सँकल्परूप तप किया । उस तप से अण्डे के सामान मुख उत्पन्न हुआ । मुख से वाक् और वाक्-इन्द्रिय से अग्नि उत्पन्न हुआ । नासिकारन्ध्र प्रकट हुए, नासिकारन्ध्रों से प्राण और प्राण से वायु प्रकट हुआ । आखें प्रकट हुईं, आँखों से चक्षु-इन्द्रिय और चक्षु से सूर्य प्रकट हुआ । कर्ण प्रकट हुए, कर्णों से श्रोत्र-इन्द्रिय और श्रोत्र से दिशाएँ प्रकट हुईं । त्वचा प्रकट हुई, त्वचा से रोम और रोमों से ओषधि एवं वनस्पतियाँ उत्पन्न हुईं । हृदय प्रकट हुआ, हृदय से मन और मन से चन्द्रमा प्रकट हुआ । नाभि प्रकट हुई, नाभि से अपान और अपान से मृत्यु प्रकट हुआ । शिश्न प्रकट हुआ तथा शिश्न से रेतस् और रेतस् से आप उत्पन्न हुआ ॥४॥
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